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जवानी में हुआ केस: खाकी से बचने के लिए बुढ़ापे तक लगाई रेस, कई राज्य बदले; नहीं बच सका क़ानून के लम्बे हाथो से

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साल की उम्र में किए अपराध के बाद सुरेंद्र महतो पूरी जिंदगी पुलिस से बचने के लिए भागता रहा। दो दशक तो इस रेस में वह आगे रहा लेकिन बुढ़ापे में कदम रखते ही कानून के लंबे हाथ सुरेंद्र को दबोचने में कामयाब हो गए। इन 21 वर्षों में भी उसे कहीं चैन नहीं मिला। वह भटकता रहा। इस दौरान वह परिवार से तो दूर रहा ही उसका बेटा भी सार्वजनिक रूप से उसे पिता नहीं कह सका।

शनिवार को जब पुलिस ने देवरिया के ग्राम महुवा पहुंची तो सुरेंद्र महतो एकबारगी भौचक्का रह गया। पुलिस को बताया कि करीब 40 साल की आयु में उसने छोटे भाई के कहने पर बालिका को बिहार भगा ले जाने की गलती की थी। छोटे लाल तो पकड़ा गया लेकिन वो पुलिस से बचने के लिए झारखंड पहुंच गया।वहां उसने वर्ष 2004 से लेकर 2012 तक धान रोपने का काम किया। इस बीच उसने परिवार से मिलना तो दूर किसी से संपर्क तक नहीं साधा। घटना के दौरान उसका एक बेटा था। उसके बाद बेटी की पैदाइश हो गई।

साधा तो पता चला कि बेटा अब समझदार हो गया है और गोरखपुर में रह रहा है। इस पर वह गोरखपुर आकर बेटे से मिला। पकड़े जाने के खौफ से वह बेटे के साथ भी नहीं रहा। यहां तक कि उसने बेटे को किसी को भी उसकी पहचान बताने से मना किया।इसके बाद वह सुरेंद्र कुशवाहा नाम से शहर में ही रहकर मजदूरी करने लगा। सब कुछ ठीक चलता रहा। इस बीच उसके दोनों बच्चोें की शादी भी हो गई। लगभग एक साल पहले वह देवरिया जिले के महुवा में एक सप्लायर के यहां ईंट ढोने का काम करने आया। उसे आभास भी न था कि दो दशक पुराने केस में बुढ़ापे में जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ेगा।

कानूनी शिकंजे को ढीला समझकर साल 2013 में परिवार से संपर्क

चार प्रदेशों की खाक छानने के बाद आरोपी तक पहुंची पुलिस
उत्तराखंड पुलिस ने आरोपी को पकड़ने के लिए 21 साल तक चार प्रदेशों की खाक छानी। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में जहां भी आरोपी के छिपने की संभावना लगती, पुलिस वहां छान मारती। इन राज्यों में पुलिस के साथ ही मुखबिर तंत्र भी सक्रिय था। इन सबके बावजूद धीरे-धीरे मामला ठंडा होता गया। हाल ही में आए एसएसपी मणिकांत मिश्रा ने फरार इनामी अपराधियों की फाइलों में दबी सुरेंद्र मेहतो की फाइल का संज्ञान लिया और टीम गठित कर दी। टीम ने इस बार आरोपी को धर लिया।

चेहरे की पहचान बदली तो बेटे के जरिये अपराधी खोज निकाला


जवानी के दौर में अपराध कर 21 साल तक लापता रहे सुरेंद्र महतो बूढ़ा हो गया। चेहरे पर झुर्रियां होने के साथ ही बदलाव भी आ गया। पुलिस उसकी पहचान के लिए फोटो का सहारा तो लेती थी लेकिन उसके बेटे पर भी नजर रखती। सुरेंद्र जब झारखंड से गोरखपुर आकर रहा तो उसकी मुलाकात बेटे से होने लगी। पुलिस को गोरखपुर के मुखबिर तंत्र से सूचना मिली कि एक सुरेंद्र कुशवाहा नाम का व्यक्ति अपराधी के बेटे से मिलता है। पुलिस ने कुंडली खंगालना शुरू किया और धीरे-धीरे लीड मिलती चली गई।

एसटीएफ और एसओजी में रहे उमेश कुमार


21 साल पुराने केस में फरार आरोपी को पकड़ने के लिए एसएसपी ने जो टीम गठित की थी, उसमें शामिल एसएसआई उमेश कुमार एसटीएफ व देहरादून एसओजी में रह चुके हैं। उन्होंने इस केस को खोलने के लिए गोरखपुर पुलिस, देवरिया पुलिस तक से संपर्क साधा और कई दिनों तक इन जिलों में रहकर काम किया।