जसपुर में दावत-ए-इस्लामी की जानिब से एक ख़ूबसूरत और रूहानी माहौल में वार्षिक जलसा दस्तारबंदी मुंक्कीद किया गया। इस मौके पर 10 हाफ़िज़-ए-क़ुरआन और 74 नाज़िर बच्चों को दस्तार के ऐज़ाज से नवाज़ा गया। जलसे का आग़ाज़ तिलावत-ए-क़ुरआन से हुआ, जिसके बाद नात-ए-पाक पेश की गई। इस दौरान उलमा-ए-कराम ने क़ुरआन की अहमियत और इसे याद करने वाले हाफ़िज़ की फज़ीलत पर ख़ास बयान किए।
उलमा ने कहा कि क़ुरआन सिर्फ़ एक किताब नहीं, बल्कि एक मुकम्मल ज़िंदगी गुज़ारने का रास्ता है। हाफ़िज़-ए-क़ुरआन के बारे में बताया गया कि वे इस्लाम के ख़ास बंदों में शामिल होते हैं, जिनके लिए क़यामत के दिन बेहतरीन इनआमात रखे गए हैं। इसके अलावा नाज़िर-ए-क़ुरआन बच्चों की मेहनत और उनके वालिदैन की कोशिशों को भी सराहा गया। कार्यक्रम में दावत-ए-इस्लामी के तालीमी और समाजी कामों पर भी रोशनी डाली गई। बताया गया कि यह तंजीम न सिर्फ़ दीनी तालीम को आम करने में मसरूफ़ है, बल्कि वेलफेयर और समाजी ख़िदमत में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है। ग़रीबों की मदद, तालीमी तरक्की, और इंसानियत की ख़िदमत इसके अहम मकासिद में शामिल हैं। इस तक़रीब में बड़ी तादाद में लोगों ने शिरकत की, जिनमें उलमा-ए-कराम, सामाजिक रुकुन , और वालिदैन शामिल थे। बच्चों को मुबारकबाद देते हुए उनकी बेहतर जिंदगी की दुआएं की गईं। दस्तारबंदी के दौरान बच्चों के सिर पर दस्तार यानी पगड़ी बांधी गई, जो उनकी मेहनत और लगन का निशान थी। कार्यक्रम के आख़िर में एक ख़ास दुआ कराई गई, जिसमें मुल्क की तरक्की, अमन-ओ-सुकून और बच्चों के रोशन मुस्तक़बिल के लिए दुआएं मांगी गईं। इसके बाद तमाम मेहमानों और बच्चों को तबर्रुक तक़सीम किया गया। इस मौके पर मौजूद लोगों ने दावत-ए-इस्लामी के इस पहल की तारीफ़ की और इसे माआशरे के लिए एक बेहतरीन क़दम बताया।

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